लेखक श्री राजेश अलोने विद्युत अभियंता
दोस्तों दुबई को दुनिया का आरामदायक और शानो शौकत वाला देश माना जाता है | लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस तरह से सुख सुविधाओं से भरा नजर आने वाला दुबई अंदर से बिल्कुल सुखा हुआ है| असल में दुबई पूरा रेगिस्तान पर बसा हुआ है, जिसके कारण वहां पीने के पानी का कोई प्राकृतिक स्रोत मौजूद नहीं है, और इसीलिए दुबई पीने का पानी के इंतजाम के लिए CLOUD SEEDING नाम की एक TECHNOLOGY की मदद लेता है| और आज हम इस पोस्ट में यही समझने की कोशिश करेंगे की Artificial Rain या कृत्रिम बारिश कैसे की जाती?
दुबई यूनाइटेड अरब अमीरात यानी कि UAE के 7 अमीरातों में से एक है| इस शहर को दुनिया के सबसे मशहूर और महंगे शहरों में गिना जाता है, क्योंकि इस शहर का अपना एक ऐसा आकर्षण है| दुनिया भर के लोग इसकी इस ओर खींचे चले आते हैं| लेकिन यह ऊपर से खुशहाल दिखने वाला अंदर से पूरी तरह सुखा हुआ है। यहां बारिश भी पूरे साल में 5 से 10 बार होती है जो कि यहां की पानी की समस्या को हल करने के लिए पर्याप्त नहीं है| वैसे तो दुबई समुद्र के किनारे बसा हुआ है, इसलिए इसके पास पानी की कोई कमी नहीं है| लेकिन समुद्र का पानी खारा होता है| इसके चलते इसको पिया नहीं जा सकता| और अगर कोई इंसान इस खारे पानी को लगातार पिए तो उसकी मृत्यु भी हो सकती है |
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अब सवाल यह उठता है कि, दुबई आखिर पीने के पानी की व्यवस्था कैसे करता है? असल में दुबई के अंदर बहुत बड़े-बड़े पानी को फिल्टर करने वाले प्लांट बनाए गए हैं| और इस प्लांट के अंदर समुद्र के खारे पानी में से नमक को अलग करके उसे पीने के लायक बनाया जाता है| लेकिन इन प्लांट को चलाने के लिए बहुत ज्यादा energy की आवश्यकता होती है| जिससे इसका खर्चा बहुत ज्यादा आता है| एक आंकड़े के अनुसार इस प्लांट के द्वारा 1000 लिटर पानी को फिल्टर करने का खर्चा $60 यानी 44 सौ रुपए तक आता है | अब जाहिर सी बात है कि पानी के लिए कोई भी सरकार इतना खर्चा तो नहीं उठाएंगे। इसीलिए दुबई सरकार इसके solution की खोज कर रही थी, जोकि इन्हें इस खर्चे से बचा सकें | और दुबई को यह solution Cloud Seeding Technology के रूप में प्राप्त हुआ |
आप में से बहुत से लोग Cloud Seeding के बारे में जानते होंगे| लेकिन जो लोग नहीं जानते उनको हम बता दें कि, इस Technology का इस्तेमाल कृत्रिम बारिश करवाने के लिए किया जाता है | अब दुबई अपनी पानी की समस्या को हल करने के लिए इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कैसे करता है, और यह टेक्नोलॉजी किस तरह काम करती है| इसे समझने के लिए पहले हम बारिश होने का Basic Concept समझते हैं |
प्राकृतिक बारिश कैसे होती है (Natural Rain)
सूरज की किरने जब पृथ्वी पर पड़ती है तो पृथ्वी पर उपस्थित पानी भाप बनकर ऊपर उठने लगता है| और चुकी ऊपर का तापमान ठंडा होता है इसलिए यह भाप ऊपर उठकर पानी की छोटी छोटी Droplet में बदल जाती है | यह ड्रॉपलेट पानी की pure form होती है | पानी की यह droplet इकट्ठा होकर बादलों का रूप ले लेती है | साथ ही बहुत ही छोटी होने की वजह से बहुत ज्यादा हल्की होती है | और यह जमीन पर तब तक नहीं आती जब तक कि यह आपस में जुड़ कर बड़ी बूंदों का रूप न ले ले |
अब चूँकि यह पानी की pure form होती है इसीलिए यह एक दूसरे से जुड़ती भी नहीं है | लेकिन जब इन droplet से धूल या धुवे के कण मिलते हैं, तब यह pure form में नहीं रह जाती | और एक दूसरे के साथ जुड़ना शुरू हो जाती है|
जैसे ही इनका वजन बढ़ता है, बड़ी बूंद बन कर पृथ्वी की ग्रेविटी कारण नीचे आ जाती है | जिसे हम लोग बारिश कहते हैं| यह है प्राकृतिक रूप से बारिश होने का Basic Concept |
Cloud seeding (कृत्रिम बारिश) (Artificial Rain)
अब अगर क्लाउड सीडिंग की बात करें तो इस टेक्नोलॉजी को सन 1946 में अमेरिकी वैज्ञानिक द्वारा Devolop किया गया था | यह एक ऐसी Technology है जो बादलों में मौजूद छोटे-छोटे Droplet को आपस में जोड़ने का काम करती है | जैसा कि हमने ऊपर देखा कि जब पानी के Droplet आपस में जुड़ती है, तो बारिश होना शुरू हो जाती है | दरअसल इस Technology में Silver Iodiode नाम का एक रासायनिक कंपाउंड बादलों के ऊपर छिड़का जाता है| इसको छिड़कने के लिए या तो प्लेन का इस्तेमाल किया जाता है, या जमीन से भी स्पेशल जनरेटर के द्वारा छिड़का जाता है |
जब यह रासायनिक कंपाउंड बादलों में जाता है, तो यह छोटे छोटे पानी के Droplet को आपस में जोड़कर बड़ी बूंद में बदल देता है | जिससे कि बारिश होना शुरू हो जाता है | और इसीलिए हम कह सकते हैं कि, क्लाउड सीडिंग एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जोकि बादलों को बारिश करने के लिए force करती है | और इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कई दशकों से सफलतापूर्वक किया भी जा रहा है | आज इसकी मदद से सिर्फ बारिश ही नहीं बल्कि कृत्रिम रूप से बर्फबारी करना भी संभव हो गया है|
दुबई सरकार ने अजहर के पहाड़ों में हट्टा नाम का एक डैम बनवाया है | जब समुद्र से उठने वाले बादल इन पहाड़ों में जाते हैं तब दुबई इन पहाड़ों में Cloud Seeding करता है | जब इस क्लाउड सीडिंग से पहाड़ों में बारिश होती है, तो बारिश का वह पानी पहाड़ों से नीचे बहते हुए समुद्र में न जाकर इस डैम के अंदर जमा हो जाता है | इस जमे हुए पानी का इस्तेमाल दुबई पीने के लिए और बिजली निर्माण के लिए करता है | अब जहां पानी फिल्टर करने का खर्चा 1000 लिटर में 44 सौ रुपए आता था, वही क्लाउड सीडिंग की मदद से सिर्फ 80 से 90 रूपये में हो जाता है | इस तरह से दुबई आधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए पीने के पानी का इंतजाम करता है | जो कि वाकई में अद्भुत है |
क्लाउड सीडिंग वैसे तो बहुत ही उपयोगी टेक्नोलॉजी है| इसका इस्तेमाल दुबई की तरह दुनिया के और भी कई हिस्सों में अच्छे कामों के लिए किया जा रहा है| लेकिन इसकी सबसे बड़ी एक यह खामी यह है की इसका इस्तेमाल हथियार के रूप में भी किया जा सकता है| .आपकी जानकारी के लिए बता दूं साल 1955 से 1975 के बीच लड़े गए युद्ध में अमेरिका ने क्लाउड सीडिंग का इस्तेमाल एक हथियार के रूप में किया था. |
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