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HOW TO WORK MOBILE SIGNAL
हम में से अधिकांश लोगों के लिए मोबाइल फोन हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है| लेकिन मैं निश्चित रूप से कह सकती हूं आपके दिमाग में ऐसे सवाल जरूर आते होंगे कि मोबाइल फोन से कॉल कैसे संभव हो पाती है? और मोबाइल कम्युनिकेशन के अलग-अलग जनरेशन क्यों होते हैं? आइए MOBILE COMMUNICATION की TECHNOLOGY के बारे में जानते हैं|
जब आप मोबाइल फोन पर बात करते हैं तो आपके मोबाइल का MICROPHONE आपकी आवाज को सुन लेता है, फिर माइक्रोफोन एक MAIN SENCER और IC की मदद से आपकी आवाज को DIGITAL SIGNAL में बदल देता है l इस डिजिटल आवाज को 0 और 1 के रूप में सहेजता है| फोन के अंदर मौजूद एंटीना 0 और 1 के SIGNAL को प्राप्त करता है और उन्हें विद्युत चुंबकीय तरंगों में संचारित करता है| 0 और 1 FREQUENCY में LOW और HIGH के रूप में संचारित किया जाता है l अगर आप इन विद्युत चुंबकीय तरंगों को किसी के फोन तक भेजने का तरीका प्राप्त कर ले तो आप उन्हें फोन पर बात कर पाओगे| लेकिन विद्युत चुंबकीय तरंगे अधिक दूरी तय करने में सक्षम नहीं होती है|
भौतिक वस्तुओं विद्युत चुंबकीय तरंगों और कुछ पर्यावरणीय कारणों के कारण यह तरंगे नष्ट हो जाती है| वास्तव में ऐसी कोई समस्या ना भी हो तो भी पृथ्वी के वक्राकार SHAPE के कारण तरंगे हमेशा अस्तित्व में नहीं रह सकती| इस समस्या का समाधान करने के लिए CELLULAR TECHNOLOGY का प्रयोग करके सेल टावर बनाए गए| CELLULAR तकनीक में एक अष्ट कोणीय सेल में बांटा जाता है| जिसमें हर सेल का एक अपना टावर और फ्रीक्वेंसी स्लॉट होता है आमतौर पर यह सेल टावर आपस में तारों द्वारा जुड़े होते हैं या विशेष रूप से कहे तो या ऑप्टिकल फाइबर केबल के द्वारा जुड़े होते हैं|
ऑप्टिकल फाइबर केबल को जमीन के नीचे या समुद्र में बिछाया जाता है ताकि राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय CONECTIVITY बनाई जा सके आपके फोन द्वारा पैदा की गई विद्युत चुंबकीय तरंगे आपके सेल में स्थित टावर तक पहुंचती है और वहां उन्हें उच्च फ्रीक्वेंसी वाली लाइट PULSE में बदल दिया जाता है|
इन लाइट PULSE को टावर के नीचे स्थित बॉक्स में SIGNAL, प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है| PROCESSING के बाद इस SIGNAL को गंतव्य टावर तक भेजा जाता है, गंतव्य टावर में पल्स प्राप्त होने पर टावर उन्हें विद्युत चुंबकीय तरंगों में बदल कर बाहर प्रसारित कर देता है और आपके दोस्त का फोन उन सिग्नल को स्वीकार कर लेता है| यह सिग्नल फिर ठीक उसी प्रक्रिया से गुजरता है और आपका दोस्त आपकी आवाज को सुन पाता है इसीलिए यह सच है की मोबाइल कम्युनिकेशन पूरी तरह वायरलेस नहीं होता इसमें वायर वाले माध्यम भी प्रयोग लाए जाते हैं|
इस तरह मोबाइल कम्युनिकेशन को अंजाम दिया जाता है| लेकिन एक और बड़ी समस्या यह है जिसका हमने अभी तक जवाब नहीं दिया है| मोबाइल कम्युनिकेशन तभी सफल हो सकता है जब टावर सिग्नल को आपके दोस्त के फोन तक पहुंचाएं लेकिन आपके टावर को कैसे पता चलता है कि आपका दोस्त किस सेल टावर क्षेत्र में है? वैसे इस प्रक्रिया के लिए MOBILE switching CEMTER (MSC) से मदद मिलती है| MSc, cell tower के समूह का केंद्र बिंदु होता है|
आइए MSCसेंटर के बारे में जानते हैं, जब आप एक सिम कार्ड खरीदते हैं तो सदस्यता से जुड़ी सारी जानकारी को MSC पर पंजीकृत किया जाता है| यह MSC आपका HOME MSC होता है| HOME MSC आपका सर्विस प्लान, आप की वर्तमान स्थिति और आपकी गतिविधियों जैसे सूचनाओं को कलेक्टर करता है| अगर आप अपनी HOME MSC से बाहर चले जाते हैं तो एक नया एमएससी आपको सेवाएं प्रदान करता है, जिसे FOREGN एमएससी कहते हैं|
जैसे ही आप फॉरेन एमएससी के क्षेत्र में आते हैं यह आपके HOME एमएससी से संपर्क करता है| उदाहरण के लिए समझे तो आपकी होम एमएससी को पता होता है कि आप कौन से एमएससी के क्षेत्र में हो यह समझने के लिए subscriber MSc क्षेत्र के अन्दर कौनसे- सेल के क्षेत्र में है एमएससी कुछ TECHNOLOGY का USE करता है| एक तरीका है की एक निश्चित समय के बाद सब्सक्राइबर की लोकेशन का अपडेट किया जाए जब कोई फोन निर्धारित टावरों की संख्या को पार करता है तो लोकेशन फिर से अपडेट की जाती है इसमें आखिरी लोकेशन वह होती है जब फोन चालू किया था|
अब बड़ा सवाल यह है मोबाइल फोन TECHNOLOGY के विभिन्न ने GENRATION क्यों होते हैं? 1G ने पहली बार वायरलेस फोन रखना संभव बनाया लेकिन 1G के साथ दो बड़ी समस्या थी पहली समस्या यह थी की वायरलेस प्रसारण ANALOG FORMATE में था एनालॉग सिग्नल बाहरी कारणों से आसानी से बदले जा सकते हैं इसीलिए इसमें आवाज की गुणवत्ता और सुरक्षा का स्तर खराब था| दूसरी समस्या इसमें यह थी इसमें फ्रिकवेंसी डिविजन मल्टीपल एक्सेस तकनीक का प्रयोग किया गया था जो उपलब्ध स्पेक्ट्रम का प्रयोग प्रभावी तरीके से करते हैं इन्हीं कारणों से मोबाइल कम्युनिकेशन की दूसरी जनरेशन का आविष्कार हुआ 2G में मल्टीपल डिजिटल excess तकनीक का प्रयोग किया गया है इसे CDMA और TDMA code division multiple access and time division multiple access ) तकनीक कहा गया दूसरी जनरेशन में एक क्रांतिकारी डाटा सेवा s.m.s. सेवा और इंटरनेट ब्राउजिंग भी लाई गई|
3जी तकनीक data transfer की high speed ध्यान में रखकर बनाई गई। इसमें wcd multiple access तकनीक का प्रयोग करने के साथ-साथ इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बैंडविथ को बढ़ाया गया है| 2 एमबीपीएस की 3G स्पीड से उपयोगकर्ता जीपीएस वीडियो और वॉइस कॉल द्वारा डाटा भेज सकते थे| साधरण फ़ोन को स्मार्टफोन में बदलने के लिए 3G एक बड़ा कदम था|
फिर आगे आया 4G इस पर 20 से 100 एमबीपीएस की स्पीड प्राप्त की गई जो hi visualisation मूवी और टेलीविजन के लिए उपयोगी थी हाई स्पीड ऑर्थोंगोनल फ्रीक्वेंसी डिवीजन multiple access के कारण संभव हो पाई|
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