Three phase induction motor hindi

THREE PHASE INDUCTION

THREE PHASE INDUCTION MOTOR में STATOR घूमता है यह 3 फेस में होता है SINGLE फेस में घूमने वाला क्षेत्र उत्पन्न नहीं होता वास्तव में फील्ड घूमता नहीं है बल्कि इसके POLE इतनी तेजी से CHANGE होते हैं कि वह घूमते हुए लगते हैं जैसे MOOVING LIGHT होती है उसमें लैंप जलते बुझते हैं लेकिन ऐसा लगता है कि लाइट घूम रही है

Torque

INDUCTION MOTOR के स्टेटर में THREE PHASE सप्लाई देने पर ROTATING MEGNETIC FIELD पैदा होता है इस फील्ड से रोटर में e.m.f. पैदा होता है और उसमें CURRENT FLLOW होने लगता है और रोटर की करंट से FLUX उत्पन्न होता है जो रोटर WINDING के कंडक्टर के चारों ओर उपस्थित रहता है जिससे CONDUCTOR पर force उत्पन्न होता है। और उस force के कारण रोटर घूमने लगता है। rotor को घुमाने वाले फोर्स को torque कहते हैं। यह torque रोटर करंट , FLUX / STATOR, POLE और POWER FACTOR के अनुपात में होता है

THREE PHASE INDUCTION MOTOR दो प्रकार की होती है

Squirrelcage induction motor

Slip ring induction motor

जब Squirrelcage induction motor के स्टेटर को THREE PHASE SUPPLY से CONNECT किया जाता है तो स्टेटर से ROTATING MAGNETIC FLUX GENRATE होता है जो रोटर की छडे काटती है जिसमें EMF पैदा होता है रोटर का REGISTANCE कम होने के कारण रोटर में HIGH CURRENT FLLOW होने लगती है जिससे रोटर ROTATING MAGNETIC FIELD की दिशा में घूमने लगता है। SLIPRING INDUCTION MOTOR के स्टेटर में सप्लाई देने पर उत्पन्न रोटेटिंग मैग्नेटिक फील्ड से वाउंड रोटर में ईएमएफ पैदा होता है और बाहर से रियोस्टेट के लगे होने के कारण रोटर में करंट कम हो जाती है जिस से स्टार्टिंग torque अधिक हो जाता है और मोटर लोड पर स्टार्ट हो जाती है जैसे ही बाहरी रजिस्टेंस कट जाता है और रोटर वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट हो जाती है वैसे ही मोटर की स्पीड बढ़ जाती है।
स्क्विरल केज और स्लिप रिंग मोटर के स्टेटस एक जैसे होते हैं परंतु रूटर अलग-अलग होते हैं स्क्विरल केज रोटर के बिना है इंसुलेटेड की गई कॉपर की छड़ी लगी हुई होती है लेकिन स्लिप रिंग मोटर में इंसुलेटेड तारो से स्टेटस की तरह वाइंडिंग की जाती है जोश के सॉफ्ट पर लगी स्लिप रिंग से कनेक्ट रहती है इसके साथ बाहर का रजिस्टेंस भी लगाया जाता है

Speed control of induction motor

इंडक्शन मोटर की स्पीड आसानी से कंट्रोल नहीं होती क्योंकि इसके स्टेटर में मैग्नेटिक पुल सिंक्रोनस स्पीड से घूमते हैं और रूटर शार्ट सर्किट होता है फिर भी स्पीड को निम्न वीडियो द्वारा कंट्रोल किया जाता है

रियोस्टेट कंट्रोल विधि


इस विधि में मोटर के रोटर के साथ 3 फेस का रियोस्टेट लगाया जाता है इस प्रकार की मोटर स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर होती है। जितना रजिस्टेंस प्रत्येक फेस में होगा उतनी ही स्पीड मोटर की होगी इस मोटर की स्पीड फुल स्पीड से अधिक नहीं की जा सकती केवल आवश्यकता अनुसार कम की जा सकती है इस ठीक-ठाक और वोल्टेज और फ्रीक्वेंसी को ऑन स्टैंड रखे तो मोटर की स्लिप रिंग रजिस्टेंस के अनुसार होती है स्लीप अधिक होने पर स्पीड कम और कम होने पर स्पीड अधिक होती है।

फ्रीक्वेंसी परिवर्तन विधि

स्पीड फ्रीक्वेंसी के डायरेक्टर पर्सनल होती है फ्रीक्वेंसी कम होगी तो स्पीड भी कम होगी और फ्रीक्वेंसी बढ़ेगी तो स्पीड भी बढ़ जाएगी इस प्रकार फ्रीक्वेंसी से स्पीड परिवर्तन हो जाता है यह मेथड सामान्य प्रयुक्त नहीं होता क्योंकि फ्रीक्वेंसी नियत एवं स्थिर रहती है इसके लिए अलग-अलग फ्रीक्वेंसी के अल्टरनेट की आवश्यकता होती है

पोल परिवर्तन कंट्रोल विधि

मोटर की स्पीड की संख्या की व्युत्क्रमानुपाती इन्वर्सली प्रोपोर्शनल होती है यदि स्टेटर में इस प्रकार की वाइंडिंग की जाएगी एक वाइंडिंग P1 पुल की ओर और दूसरे P2 पुल की बनाई जाए तो उसकी सिंक्रोनस स्पीड n1 और * होगी तो

N1=120x f/P 1

N2=120xf/P2

जैसे जैसे pole की संख्या बढ़ती है वैसे-वैसे स्पीड कम होती है यह विधि स्क्विरल केज इंडक्शन मोटर में अधिक प्रयोग की जाती है क्योंकि उसके रोटर के pole स्टेटर के pole के समान ही बने होते हैं लेकिन स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर में ऐसा नहीं होता यदि स्टेटर के pole की संख्या में परिवर्तन किया जाए तो रोटर की वाइंडिंग में भी pole की संख्या में परिवर्तन करना पड़ता है

बास्केट कंट्रोल विधि

इस विधि में दो स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर प्रयोग की जाती है दोनों को मैकेनिक मेकैनिकली कनेक्ट कर दिया जाता है एक स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर के स्टेटर में थ्री फेज सप्लाई दी जाती है उसके रोटर के कनेक्शन दूसरी स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर के स्टेटस ए कर दिए जाते हैं और रोटर में रियोस्टेट लगा दिया जाता है

इस प्रकार दोनों मोटर के पोलों में परिवर्तन रखने पर स्पीड में परिवर्तन किया जाता है इसमें डाक स्पीड परिवर्तन के साथ साथ परिवर्तन होता है इसका स्टार्टिंग टॉर्क कम होता है और पावर फैक्टर भी कम होता है इसलिए यह विधिक कम यूज में लाई जाती है।