TRANSFORMER एक ऐसा DEVICE है जो electric energy को एक circuit से दूसरे circuit में transfer करती है यह MUTUAL INDUCTION के सिद्धांत पर कार्य करता है INDUCTION ONLY AC circuit में होता है
structure
Primary winding :-.
जिस वाइंडिंग को electric source से CONNECT किया जाता है वह PRIMERY WINDING कहलाती है।
Secondry winding
जिस वाइंडिंग को load से CONNECT किया जाता है वह SECONDARY WINDING कहलाती है TRANSFORMER को स्टील स्टंपिंग से बनी core स्थापित किया जाता है।कोर का मुख्य कार्य है
1. PRIMERY द्वारा स्थापित MEGNETIC FIELD की चुंबकीय बल रेखाओं का मार्ग पूर्ण करना
2.प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की अधिकतम चुंबकीय बल रेखाओं को सेकेंडरी से गुजारना।
Working
जब ट्रांसफार्मर के प्राइमरी को AC current से CONNECT किया जाता है तो ac में CURRENT के प्रवाह से PRIMERY के चारों ओर एक ALTERNETING स्वभाव का MEGNETIC FIELD पैदा होता है। सेकेंडरी वाइंडिंग के CONDUCTOR प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र की चुंबकीय बल रेखाओं को छेदन करके और फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुरूप EMF पैदा हो जाता है क्योंकि प्राइमरी द्वारा स्थापित चुंबकीय क्षेत्र AC स्वभाव होता है। इसीलिए SECONDARY के CONDUCTOR बिना कोई गति किए चुंबकीय बल रेखाओं का छेदन करते हैं इस प्रकार प्राइमरी तथा सेकेंडरी के बिना किसी CONNECTION और TOUCH के ही ELECTRIC ENERGY प्राइमरी SE सेकेंडरी में स्थानांतरित हो जाती है यह क्रिया ट्रांसफार्मर action कहलाती है
ट्रांसफॉर्मर रेशों transformer ratio
किसी ट्रांसफार्मर के लिए सेकेंडरी वाइंडिंग की turn संख्या तथा प्राइमरी वाइंडिंग की turn का अनुपात ट्रांसफॉरमेशन रेशों कहलाता है
K=Ns/Np
ट्रांसफॉर्मर के PRIMERY WINDING पर आरोपित emf अल्टरनेटिंग चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करता है यह मैग्नेटिक फील्ड सेकेंडरी वाइंडिंग से गुजरता है और विद्युत चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुसार उसमें एक emf पैदा करता है। सेकेंडरी वाइंडिंग में पैदा होने वाले emf का मान उसकी टर्न संख्या पर निर्भर करता है यदि सेकेंडरी winding में प्राइमरी की अपेक्षा अधिक turn है तो उसमें अपेक्षाकृत अधिक विद्युत वाहक बल पैदा होता है और यदि उसमें प्राइमरी की अपेक्षा कम turn है तो उसमें कम यह में emf होता है
ट्रांसफार्मर losses
यह एक सर्किट से दूसरे सर्किट को विद्युत ऊर्जा के स्थानांतरण के लिए व्यापक तौर पर किया जाता है कोई ट्रांसफॉमर 100% energy स्थानांतरित नहीं कर पाता इसका कारण है लॉसेस।
ट्रांसफर में मुख्यतः निम्न दो प्रकार के losses होते हैं आयरन लॉस और कॉपर लॉस
आयरन लॉस
ट्रांसफार्मर के load se पैदा होने वाली विद्युत शक्ति की लॉस आयरन लॉस कहलाती है इस का मान प्रत्येक लोड पर सामान्य नियत रहता है और इसलिए नो लोड लॉस भी कहते हैं यह दो प्रकार के होते हैं एडी करंट लॉस और हिस्ट्रेसिस लॉस
फैराडे के विद्युत चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत के अनुसार किसी अल्टरनेट चुंबकीय क्षेत्र में अवस्थित चालक में यह में पैदा होता है और इसके अनुरूप ट्रांसफार्मर की core में emf पैदा होता है emf के कारण कोर में प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा और अनावश्यक रूप से विद्युत शक्ति की खपत करती है इसे एडी करंट लॉस कहते हैं
Hysteresis loss
अधिक चुंबकीय क्षेत्र के बार-बार चुंबकीत तथा वि चुंबकीय की होने में विद्युत शक्ति की जो खपत होती है वह हिस्ट्रेसिस लॉस कहलाती हैं।
Copper loss
यह विद्युत शक्ति की वह शक्ति है जो वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण पैदा होती है इस क्षति का माल लोड बढ़ाने के साथ-साथ बढ़ता है ।
Efficiency
ट्रांसफार्मर की आउटपुट और इनपुट के अनुपात को ट्रांसफार्मर की एपीसीएससी कहते हैं आउटपुट और इनपुट किलो वाट में नापी जाती है सेकेंडरी से प्राप्त पावर आउटपुट और प्राइमरी में दी गई पावर इनपुट कहलाती है
All day efficiency
Transformer में सप्लाई हमेशा कनेक्ट रहते इसकी सेकेंडरी से लोड वाले आयरन ला सदैव होता रहता है परंतु कॉपर लॉस तभी होता है जब उसमें लोड लगाया जाता है इस प्रकार पूरे दिन की आउटपुट किलो वाट घंटा और इनपुट किलो वाट घंटे के अनुपात all day efficiency कहते हैं
ट्रांसफॉर्मर ऑन नो लोड
जब ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग ओपन रखी जाती है और कोई लोड नहीं लगाया जाता है तब कहा जाता है कि ट्रांसफर लो लोड पर है इससे जो लॉसेस होता है वह आयरन लॉस होते हैं लेकिन ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में कुछ रजिस्ट्रेशन होता है जिसमें बहुत कम करंट प्रवाहित होता है तो कॉपर लाश होने लगता है copper loss के अतिरिक्त कोर में एडी करंट और hyteresis जिसके कारण कुछ आयरन लॉज भी होता है नो लोड की दशा में नो लोड करंट लास कंपोनेंट कहलाता है करंट वोल्टेज से लैग नहीं करती परंतु 90 डिग्री एंगल से कम रहता है।